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कोई खास

मिलता जो अब तक कोई खास, तो रख लेती दिल के बेहद पास। जब वो रहेता साथ बढ़ाने मेरी आस,  ना होती मैं यूॅं निराश । कोई खास नही है, तभी तो जिंदगी बेरंग है। सपने भी कुछ खास नही आ रहे, मंजिल के पास जाने को नहीं तड़पा रहे। सूनापन ये जिंदगी का बहुत तकलीफ दे रहा है, महफिल में मौजूद होने के बावजूद तन्हाई दे रहा है । खुद को कोसते रहेने का मौसम छाए जा रहा है, उसकी कमी का अहसास मुझे बेचैन  किए जा रहा है।

गुस्सा

कभी रुलाता तो कभी हॅंसाता है गुस्सा, पर कभी बहुत कुछ सीखा जाता है ये गुस्सा । कमजोरियों पर काबू करना सिखाता है, तो शब्दों को तोलमोल के बोलना सिखाता है।  हर परिस्थिति में खुद पर काबू करके, धैर्य से अड़चनों का सामना करना भी सिखाता है । अपने दो पल के अहसास का बड़ा सबक सिखाता है, प्यारभरे रिश्तों में भी दरारें ले आता है। सब कुछ छीन लेता है हमसे, पलभर में तन्हाई और दर्द दे जाता है। गुस्सा करने से सबसे ज्यादा नुकसान,  खुद का ही होता है । समय  तो बीत जाता है पर,  यादों में अपना निशान छोड़ जाता है।

सावन का ऑंगन

सावन के ऑंगन में,  मिट्टी की वह खुशबू में...  जो एहसास हुआ करते थे,  वो कहीं गुम हो गए हैं । सावन भी है और आंगन भी वही है,  पर वो एहसास कहीं खो गए हैं .... ढूॅंढ रहे हैं उन पलों को, जो बिताए थे अपनों के संग। वो ठहाकों के शोर के संग, हम भी कहीं खो गए हैं । हम भी कहीं खो गए हैं कोई जाओ ले आओ , हमारे पुराने एहसासों को... जो इस जमाने की चकाचौंध में,  सुन्न हो गए हैं।

दुविधा

दुविधा में हूॅं कैसे उलझनों को सुलझाऊॅं,  दर्द के तूफानों से कैसे में टकराऊॅं...  कशमकश अपनी छुपाकर कैसे मैं मुस्काऊॅं,  मेरी सच्ची हिम्मत इस जहाॅं को कैसे में दिखलाऊॅं ।

ऑंसु

ऑंसु थमते नहीं क्योंकि एहसास काबू में नहीं, दिमाग कहता कुछ और पर दिल काबू में नहीं।  अश्क ही है जो साथ निभाते आए हैं हमेशा से, इसीलिए किसी और की हमें  जरूरत ही नहीं...!

कोहिनूर

तेरे चेहरे का नूर जैसे एक कोहिनूर, चमकार से उसकी चमका मेरे जीवन का नूर । घने अंधेरों से मुझे बाहर निकालता, प्रकाश की किरणों सी उर्जा जगाता । हर वक्त रहने लगी मैं खुशियों में चूर, तेरे चेहरे का नूर जैसे एक कोहिनूर....! हर गम के साए से मुझे बाहर निकालता, विश्वास की डोर थामे रास्ता दिखलाता । अड़चनें जीवन की सारी हो गई दूर, तेरे चेहरे का नूर जैसे एक कोहिनूर ...!!!

''राजशार''

ख्वाबों  के गहरे समंदर की, बूँद सा एक अरमान तुम , खूबसूरती के आईने की  मीठी मंद मुस्कान तुम !                                     खुशियों की सौगात वाली परी                                      ऊर्जा और आत्मविश्वास से भरी                                      लगन और एकनिष्ठा की                                      अपनी ही अलग पहचान हो तुम ! परिश्रम ही  तुम्हारी पहचान  चारों  और से मिले तुम्हें सन्मान ! चाहे जहाँ भी रहो ,आबाद रहो  'बीना' के ख्वाबों की राजशार तुम !!

इतिहास

एक लड़की की यही होती है कामना, मिल जाए जब उसे अपने सपनों का सजना ... सब कुछ भुलाकर उसे उसका ही होना होता है, सबकी नजरों से छुपकर "गुप्त रोमांस" करना होता है...! मनपसंद जगह पर अपनी साथ उसका हो, आंखों में प्यार और हाथों में हाथ उसका हो, खो जाए दोनों एक दूसरे में पल वो थम जाए, जीवन के सारे सपने हकीकत बन जाए...! ख्वाहिशों के समंदर में उसे डूबना होता है, अपनी प्यारी बातों से उसका दिल जीतना होता है, जो भी समय वो साथ गुजारे ऐसा यादगार बन जाए... उनके प्यार की चर्चा एक इतिहास बन जाए...!!!

नई पहचान

 नई पहचान शब्दों का भंडार जो मेरे जीवन को समृद्ध करता है, हर पल मुझे अपने आप की एक नई पहचान करवाता है...। जिसके साथ होती है मेरे दिन की शुरुआत और ढलती है जिसके साथ मेरी हर रात । मेरा लेखन ही है मेरा वह क्रश जिस पर मेरा दिल आया है। उसके साथ ही जीवन के हर रंग रूप देखती हूॅं, अपने सारे एहसासों को बखूबी बयाॅं करती हूॅं। मेरी कलम के सहारे हासिल करती हूॅं वह मकाम, जो दिलाती है मुझे एक नई पहचान ।

एक कप कॉफी

  यादों में आज भी छिपी हुई है, तुम्हारे साथ पी हुई वह एक कप कॉफी... जिसके साथ साझा किए थे हमने अपने सपने, मुलाकातों के वह पल कितने हसीन थे... जब हम एक दूसरे को जान कर भी अनजान रहते थे, सारी परेशानियाॅं भुलाकर सिर्फ उस पल में खो जाते थे । अब हम साथ होकर भी उन पलों के लिए तरसते हैं, खो गए हैं वह भी शायद उस एक कप कॉफी की तरह, अतीत की यादों में... जो लौटना चाहते हैं, फिरसे हमारे जीवन में....!!!

होली का संदेश

रंगों का त्योहार है होली, बोलो सभी बस प्यार की बोली। बिखेरो रंग उड़ाओ गुलाल, टोलियाॅं आई करने धमाल । रंग तो बस एक जरिया है, जिस से मेलजोल बढ़ाना है । बैरभाव सारे भुलाकर, चाहत को दिल में जगाना है । हर रंग जीवन के हैं अच्छे, मानते सभी बूढ़े और बच्चे । जीवन हर क्षण बदलता है, अपना जादू बिखेरता है । होली हो या दिवाली, यही है एक संदेश । मानवता से बड़ा, नहीं कोई देश या वेश...!

चालाक पत्नी

हर बार जब पति चालाकी करें तो पत्नी ही क्यों चुपचाप सहे, सोच लिया आज तो उसने सीखाऊंगी सबक बिना कुछ कहे...! देदी कामवाली को छुट्टी... खुद भी चली मनाने किटी पार्टी, घर में पड़ा था कामों का ढेर... पतिदेव सोए रहे बड़ी देर । उठकर जब देखा तो फर्श थी बड़ी गीली, फिसलते फिसलते बचे वो मुश्किल थी वह घड़ी । नल रह गया था खुला पानी था चारो और बिखरा, बहुत सोचने पर समझ में आया उन्हें माजरा । मेरे बुरे व्यवहार का जवाब है ये, बिना कुछ कहे मचाया बवाल है ये...!

मुहब्बत और गुनाह

मुहब्बत और गुनाह साथ-साथ नहीं चल सकते, जहां प्यार है वहां किसी को दर्द नहीं दे सकते।  मुहोब्बत तो पूजा होती है, जो दिल से निभाई जाती है। जहां कसमें खाई जाती है, और रस्में भी निभाई जाती है । गुनाह एक ऐसी राह है, जिसका अंतिम पड़ाव सिर्फ सजा है । जहां सिर्फ दर्द से शुरुआत होती है, और अंत भी बड़ा दुखदाई होता है । ⁩

गाय और मुर्गी

 यह कहानी है एक गाॅंव की, जहां बसती थी एक गाय और एक मुर्गी । सुबह सवेरे सुनकर मुर्गी की पुकार..  होती थी गांव के लोगों के  दिन की शुरुआत । तो वही किसी शांत इलाके में कभी कबार कूड़े कचरे के पास, नजर आ जाती थी भूखी गाय । करें तो क्या करें जब नहीं थी कोई और सहाय, अपनी भूख मिटाने का यही एक था उपाय । यह गाय और मुर्गी दोनों  बहुत खास थे वहां,  क्योंकि एक  सबको नींद से जगाती थी और दूसरी उनकी सेहत बनाती थी । पर फिर भी उन दोनों की चिंता छोड़ ... गाॅंव वालों की दुनिया बस अपने तक ही सीमित रह गई थी । 🖊️⁩

हवेली का राज

उस पुरानी हवेली में कई राज दफन थे, थोड़े सच्चे तो थोड़े बने बनाए किस्से थे । डरते थे सब वहां जाने के लिए क्योंकि रहती थी वहां एक भूतनी डराने के लिए... बाहर से जितनी ही आकर्षक थी वह हवेली, अंदर से उतनी ही अकेली पड़ गई थी वह । तरस गई थी वह देखने इंसान का मुखड़ा, कहां जाए किसे सुनाये वह अपना दुखड़ा.... भूतनी बूतनी नहीं थी वहां... थी वह एक अबला, जिसने गुंडों से बचने  लिया था वहां आसरा । लोगों की कहानियों को भूतनी बनकर उसने सच कर दिया, अपने सच्चे अस्तित्व को उसने उस हवेली में दफन कर दिया ...!!!

शब्दों का नगर

गुम कर दिया खुद को मैंने शब्दों के नगर में, जहां अपनी कलम और कागज के सहारे जीना था मुझे हर पल में...!  अंतर्मन में सच्चे ज्ञान का दीपक जलाना था, नित नए शब्दों से अपना भंडार जो भरना था। अपने सारे एहसास को ऐसे बयां करना था, जो बसाले मुझे सभी वाचकों के दिलों में...! खोज ये मेरी अभी तक जारी है, क्योंकि यह शब्दों की दुनिया बड़ी निराली है। अब तो यही मेरी दुनिया है जो मुझे बड़ी प्यारी है, आखरी साॅंस तक मुझे इन्हीं  से दोस्ती निभानी है ...!!!

दुश्मनी

रात दिन सताती हैं जो मुझे  बना हुआ काम बिगाड़ती हैं, सारी मेहनत पानी में फेरकर  नादान बनकर इतराती हैं...! और कोई नहीं वो वह है मेरी कमजोरियां, जिन से मुझे दुश्मनी है क्योंकि बढ़ाती है वह मेरी गलतियां । हर एक में होती है कमियां पर परेशान करके छोड़ती है वह मुझे, अपनी ही नजरों में यह बार-बार गिरा देती है मुझे । यह भी कैसी दुश्मनी है जिसको खत्म करना मेरे ही हाथ है, तब तक मैं कमजोर हूं जब तक यह मेरे साथ हैं । खैर कोई बात नहीं... इस दुश्मनी को तो मैं मार भगाऊंगी, इन कमजोरियों को बदलकर अपनी ताकत में, एक दिन अवश्य मैं मंजिल को पाऊंगी...!!!

'' जन्मदिन''

जिसको देखकर जी न भरे वो हो तुम , जिसको मिलकर भी जी न भरे वो हो तुम !     चाँद सा चमकता चहेरा       सुंदरता का तुम हो नजारा  जैसी सूरत वैसी सीरत , कभी कठोर तो कभी ममता की मूरत !      काम से अपने बड़ा लगाव ,      तुम्हारी ही तरफ होता है सबका झुकाव  सबको बनना है तुम्हारे ही जैसा , बताओ क्या है राज इसका ?      जन्मदिन पर तुम्हारी क्या दूँ  दूँवा ?      हमेशा हसती  रहो चाहे  हो तुम जहाँ   सफलता समृद्धि और खुशियों से भरा रहे तुम्हारा  आशियाँ , यही है ''बीना  '' की  हमेशा से दूँवा !!!

"कर ले तू"

कर ले तू कुछ कर ले तू , बढ़ ले तू आगे बढ़ ले तू ! खुद के अंदर झांक ले तू , क्या है तू क्या चाहता है तू ! अपने अंदर जोश को भर ले  , अपना हर एक काम मन से कर ले ! कर ले तू कुछ कर ले तू , बढ़ ले तू आगे बढ़ ले तू ! तुजमे है हिम्मत कर सकेगा तू , तुजमे है ताकत लड़ सकेगा तू  !   तुजमे है कुछ करने की चाह  ,                                                                                                बन सकेगा तू ! कर ले तू कुछ कर ले तू , बढ़ ले तू आगे बढ़ ले तू !   तू ही है गाँधी तू ही है कलाम , तुजमे ही छिपा है भारत का नवनिर्माण ! आगे मंजिल है ऊपर है खुला आसमान, जो चाहे कर ...

पूर्णत्व की खोज

हम पूर्णत्व पाने की खोज में यहाँ वहाँ भटकते रहते हैं  पर हम ये भूल जाते है  कि हमें जो अपेक्षा दूसरों से है वही अपेक्षा किसी को हमसे है !पहले हमें अपनेआप में  पूर्णत्व  लाने का परिवर्तन करना है  पहले हमें सुधरना है फिर अगर हो सके तो अपने कार्य को इतना प्रभावशाली बनाना है  जिससे लोग हमसे प्रेरित होकर खुद ब खुद पूर्णत्व लाने का प्रयास करेंगे     इतना सब कुछ जानने ,सोचने और लिखने के बाद भी क्या मैं  अपनेआप को पूर्ण गुणी बना पाई हूँ ?नहीं  !दुसरो में पूर्णता को खोजना और उसकी अपेक्षा करना जितना सहज सरल है उतना ही कठिन है अपनेआपको पूर्ण  व्यक्ति बना पाना !    क्या इससे   यह साबित नहीं होता की हम खुद अपूर्ण होने पर भी हर व्यक्ति  में पूर्णता खोजते है ये जानते हुए  भी कि इस दुनिया में कोई भी पूर्ण नहीं है। !मगर फिर भी हमारा ये सफर हमें रुकाना नहीं है ,चलते ही जाना है पूर्णत्व की खोज में ...... आगे बढ़ना है  पूर्णत्व  की खोज में.......