सावन का ऑंगन
सावन के ऑंगन में,
मिट्टी की वह खुशबू में...
जो एहसास हुआ करते थे,
वो कहीं गुम हो गए हैं ।
सावन भी है और आंगन भी वही है,
पर वो एहसास कहीं खो गए हैं ....
ढूॅंढ रहे हैं उन पलों को,
जो बिताए थे अपनों के संग।
वो ठहाकों के शोर के संग,
हम भी कहीं खो गए हैं ।
हम भी कहीं खो गए हैं
कोई जाओ ले आओ ,
हमारे पुराने एहसासों को...
जो इस जमाने की चकाचौंध में,
सुन्न हो गए हैं।
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