शब्दों का नगर
गुम कर दिया खुद को मैंने शब्दों के नगर में,
जहां अपनी कलम और कागज के सहारे जीना था मुझे हर पल में...!
अंतर्मन में सच्चे ज्ञान का दीपक जलाना था,
नित नए शब्दों से अपना
भंडार जो भरना था।
अपने सारे एहसास को ऐसे बयां करना था,
जो बसाले मुझे सभी वाचकों के दिलों में...!
खोज ये मेरी अभी तक जारी है,
क्योंकि यह शब्दों की दुनिया बड़ी निराली है।
अब तो यही मेरी दुनिया है जो मुझे बड़ी प्यारी है,
आखरी साॅंस तक मुझे इन्हीं से दोस्ती निभानी है ...!!!
Comments