'नारी 'शब्द शक्ति का प्रतीक है ,और नारी को अपने जीवन में कई रूप लेने पड़ते है और वह ये सभी रूप अच्छी तरह से निभाती है। नारी से ही ये संसार चक्र आगे बढ़ता है। नारी ईश्वर का वरदान है ,जो हमें महानता का ज्ञान देती है। अगर नारी न होती तो कुछ भी न होता। प्यार और बलिदान का दूसरा रूप 'नारी' है। नारी जब पुत्री के रूप में जन्म लेती है ,तो माता पिता के जीवनमे खुशियाँ भर देती है। अपनी चहक से घर आँगन को महका देती है। जब विदा होकर ससुराल जाती है तो वहाँ पर भी सबको सहजतासे अपना लेती है। अपना घर-बार, माता -पिता सबको भुलाकर सास ससुर को ही अपने माता पिता का दर्जा देती है और गृहलक्ष्मी बनकर अपने कर्त्तव्य का पालन करती है। पत्नी के रूपमे वह पति को एवं उसके परिवार के सदस्योंको ,उनके गुण -दोषो सहित अपनाती है। उनकी पसंद -नापसंद का ख्याल रखती है। नारी में ही वह शक्ति है जो हर नए रूप में अपनेआपको आसानी से ढाल सकती है। नारी का सर्वश्रेष्ठ रूप ''मातृत्व'' का है। नौ मह...
तुमसे मिलना भी तो नहीं आता और तुम्हे बुलाना भी तो नहीं आता दिन रात खोई रहती हूँ यादों में तुम्हारी सपनो से तुम्हे भूलाना भी तो नहीं आता जिस मुहोब्बत के ख्वाबों ने बनाया है मुझे शायर गीत बनाकर उसे गुनगुनाना भी तो नहीं आता तस्वीर से तुम्हारी करती हूँ प्यार की बातें , अपना प्यार तुम तक पहुँचाना भी तो नहीं आता मै चाहूँ तो तुमसे दिल की बात भी कहलवा लूँ पर अपना हक़ तुम पर जताना भी तो नहीं आता जिस दास्ताँ को सुनती रही है ''बीना '' अब तक उस दास्ताँ को हकीकत बनाना भी तो नहीं आता !!!
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