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मन

मन है चंचल, भटकता पल पल। फिरता यहाॅं वहाॅं, मिले बसेरा जहाॅं । लक्ष्य से भटकाता कभी, काॅंटा बनकर सताता कभी। अपनों से दूर ले जाता कभी, उलझने पैदा करता ये कभी। ख्वाहिशों का है ये स्थान, जो करवाता कभी अपमान। जिसने मन को साधा, उसने पाया सम्मान। इच्छाओं पर काबू पाकर, दर्द से मुक्ति पाई उसने। अपने मन को साधकर, परम शांति पाई उसने।

होली

रंग बरस रहे हैं तरह-तरह के, होली खेलने जन मन तरसे । दिलों को करीब  लाने वाला, पावन यह त्यौहार जो है...! लाल रंग लाता खुशियों को, बढ़ाता प्रेम और समृद्धि को । पीला रंग ज्ञान का है सूचक, अंतर्मन की बढ़ाता चमक । हरा रंग ऑंखों को भाता, गर्मी में शीतलता लाता । गुलाबी रंग से खुशियाॅं छाती, तन मन में प्रसन्नता छाती । नीला हो या केसरी, काला हो या बैंगनी । चाहे हो कोई और रंग, बढ़ाते सब के दिलों में एक नई उमंग...!!!

धन्य हो तुम...!!!

सुरक्षा करते हैं जो देश की, लगाते हैं बाजी अपनी जान की। भूल जाते हैं बाकी सब कुछ, याद रखते हैं बस अपने वतन की । परिवार को अपने भूलकर, सारे देश को ही अपना मान लेते हैं । उसकी सुरक्षा की खातिर, जी जान लगा देते हैं । सिर्फ सैनिक नहीं है वो, वो तो हमारी शान है । जिनकी वजह से हम चैन से जी रहे हैं, हमारा वह सम्मान है । दिन-रात लड़ते हैं जो, हर कमी को सहते हैं वो । आंधी हो या तूफान, करते हैं वो सब का सामना । जब तक दुश्मन से लड़ न लें, चैन से नहीं है उन्हें बैठना । मेरे देश के वीर सैनिकों, देश की जान हो तुम । नतमस्तक होकर वंदन करती हूं तुम्हें , धन्य हो तुम ,धन्य हो तुम....!!!

शाम

ऐ शाम धीरे-धीरे गुजर, थोड़ा ठहरने दे मुझे इन पलों में । भूल जाने दे मुझे मेरे सारे काम, आज का यह वक्त करूॅंगी मै बस तुम्हारे ही नाम । तुम्हारी सुंदरता लुभाती है मुझे, हर पल सब कुछ भुलाती है मुझे।  क्यों खींचती हो मुझे तुम्हारी ओर, कि सुनाई ही नहीं देता मुझे किसी का शोर..?  डूबना चाहती हुॅं मैं तुम्हारी निगाहों में, कभी तो भर लो मुझे अपनी बाहों में । यह जीवन का कोई भरोसा भी तो नहीं, कब बुलावा आ जाए मौत का पता ही नहीं । इसीलिए कहती हूं...   ऐ शाम धीरे-धीरे गुजर, जी लेने दे मुझे यह पल ।

अदृश्य प्रेम पत्र

कभी पढ़ लेते मेरी ऑंख, तो पढ़ पाते मेरा वो अदृश्य प्रेम पत्र... जो तुम्हारे लिए मेरी ऑंखों से लिखा गया था । कभी समझ पाते मेरे दिल के एहसास, तो ले पाते महेक मेरे अदृश्य प्रेम पत्र के जज्बातों की... जो दिल के उद्यान में सिर्फ तुम्हारे लिए खिलते थे । कभी देखते मेरी और प्यार से, तो समझ पाते मेरा वह अदृश्य प्रेम पत्र का प्यार... जो सिर्फ तुम्हारे लिए था । कभी मेरे बारे में दिन रात सोचते, तो समझ पाते कि... यह अदृश्य प्रेम पत्र का जिक्र, सिर्फ तुम्हारे लिए था, है और रहेगा...!!!

प्रकृति माॅं

सुबह का सूरज हो या संध्या की लाली, प्रकृति माॅं की सुंदरता की बात ही है निराली । पक्षियों का गीत हो या झरनों का संगीत, मन को प्रसन्नता बाॅंटती प्रकृति माॅं की हर रीत । चॅंचल बहती नदी हो या समुंदर तूफानी, अशांति से शांति की तरफ बढ़ती हमारी जिंदगानी । पेड़ पौधे हो या फूल, पर्वत हो या बादल, बढ़ाते रहते  हैं  जीवन में सदैव आनंद मंगल । खुला आसमान हो और चाॅंद सितारों का साथ हो, चाॅंदनी रात के उन सपनों सी कोई न दूजी सौगात हो ...!