शाम
ऐ शाम धीरे-धीरे गुजर,
थोड़ा ठहरने दे मुझे इन पलों में ।
भूल जाने दे मुझे मेरे सारे काम,
आज का यह वक्त करूॅंगी मै
बस तुम्हारे ही नाम ।
तुम्हारी सुंदरता लुभाती है मुझे,
हर पल सब कुछ भुलाती है मुझे।
क्यों खींचती हो मुझे तुम्हारी ओर,
कि सुनाई ही नहीं देता मुझे किसी का शोर..?
डूबना चाहती हुॅं मैं तुम्हारी निगाहों में,
कभी तो भर लो मुझे अपनी बाहों में ।
यह जीवन का कोई भरोसा भी तो नहीं,
कब बुलावा आ जाए मौत का पता ही नहीं ।
इसीलिए कहती हूं...
ऐ शाम धीरे-धीरे गुजर,
जी लेने दे मुझे यह पल ।
Comments