'यूँ ही'
समज नहीं पा रही हूँ मैं अपनेआपको
के अंदर ही अंदर क्यों मैं कोसे जा रही हूँ खुद को ?
क्या गम है ,क्या है परेशानी ?
कौनसी उल्ज़न है ,क्या है हैरानी ?
मुसीबतों का सामना करते करते -
अब मैं खुद ही एक मुसीबत क्यो बने जा रही हूँ
के यूँ ही मैं ऐसे जीये जा रही हूँ
रह रहकर आता है किसी का ख्याल ,
उठती है हर पल दिलमे किसी की याद।
किसी को न भूल जाने की चाह में
मैं खुद ही अपनेआपको भुलाये जा रही हूँ।
के यूँ ही मैं ऐसे जीये जा रही हूँ
दिल सोचता है ये तन्हाई क्यों है ?
गर नहीं चाहिए तो ये अकेलापन क्यों है ?
अकेलापन दूर करते करते ,
मै यूँ ही तनहा जीये जा रही हुँ.
अंदर ही अंदर मैं घुटके मरे जा रही हूँ
अपनी ही हिमाकतों से लड़े जा रही हूँ
ना चाहते हुए भी साया साथ छोड़े जा रहा है
और फिर भी मैं अपने मुकद्दर से लड़े जा रही हूँ
के यूँ ही मैं ऐसे जीये जा रही हूँ।
के अंदर ही अंदर क्यों मैं कोसे जा रही हूँ खुद को ?
क्या गम है ,क्या है परेशानी ?
कौनसी उल्ज़न है ,क्या है हैरानी ?
मुसीबतों का सामना करते करते -
अब मैं खुद ही एक मुसीबत क्यो बने जा रही हूँ
के यूँ ही मैं ऐसे जीये जा रही हूँ
रह रहकर आता है किसी का ख्याल ,
उठती है हर पल दिलमे किसी की याद।
किसी को न भूल जाने की चाह में
मैं खुद ही अपनेआपको भुलाये जा रही हूँ।
के यूँ ही मैं ऐसे जीये जा रही हूँ
दिल सोचता है ये तन्हाई क्यों है ?
गर नहीं चाहिए तो ये अकेलापन क्यों है ?
अकेलापन दूर करते करते ,
मै यूँ ही तनहा जीये जा रही हुँ.
अंदर ही अंदर मैं घुटके मरे जा रही हूँ
अपनी ही हिमाकतों से लड़े जा रही हूँ
ना चाहते हुए भी साया साथ छोड़े जा रहा है
और फिर भी मैं अपने मुकद्दर से लड़े जा रही हूँ
के यूँ ही मैं ऐसे जीये जा रही हूँ।
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