'उफ़ ये ज़िन्दगी'
न चाह है हमें और जीने की
अगर रहा ऐसा ही ये ज़िन्दगी का सफर।
ग़मों की परछाई तो है हमें मंजूर
पर न चाह है हमें मुसीबतों की डगर की !
इस जीने का भी क्या कोई अर्थ है ?
जिसका ना तो कोई मकसद है ,
ना मंज़िल है ,ना साहिल है
हर तरफ बस आँधी और तूफ़ान है.
अगर रहा ऐसा ही ये ज़िन्दगी का सफर।
ग़मों की परछाई तो है हमें मंजूर
पर न चाह है हमें मुसीबतों की डगर की !
इस जीने का भी क्या कोई अर्थ है ?
जिसका ना तो कोई मकसद है ,
ना मंज़िल है ,ना साहिल है
हर तरफ बस आँधी और तूफ़ान है.
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