'सागर'
सागर किनारे ,
                जब शांत लहरों से मै  गुफ्तगू करती हूँ 
                तब अपनेआप से मै  खुद ही चकित होती हूँ 
                हर महफ़िल में यूँ तो मै  तन्हा  रही हूँ 
                फिर इन मौजों से भला 
                मै  कैसे कुछ कहे पा रही  हूँ ?
अभी अभी  तो निश्चिन्त सोई हुई थी ये लहरे 
अचानक ही इनमे एक मस्ती सी छा  गयी  
ये लहरे तरंगो में डूबने लगी 
अपनी ही धून  में ये खोने लगी 
               सागर की मौजों से अपनी तुलना करते करते 
               मै  अपने ही जीवनसागर में डूब रही हूँ 
               कभी चुप रहना ,कभी बोलते ही रहना 
               मै  भी तो एक सागर सी पहेली हूँ !!!
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