'नज़र'
दिल की गहराईओं में से निकलती थी जो नजर
धूपसे घिरी छाँव को चीरती थी जो नजर
प्यार की सुनहरी यादें दोहराती थी जो नजर
दिल के हसीन तारों को छेड़ती थी जो नजर
ऐ मेरे हमसफ़र ,
क्या तुम ये बताओगे ये मुझे ,
कहाँ खो गई वो कई नज़रों भरी एक नजर ?
धूपसे घिरी छाँव को चीरती थी जो नजर
प्यार की सुनहरी यादें दोहराती थी जो नजर
दिल के हसीन तारों को छेड़ती थी जो नजर
ऐ मेरे हमसफ़र ,
क्या तुम ये बताओगे ये मुझे ,
कहाँ खो गई वो कई नज़रों भरी एक नजर ?
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