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Showing posts from August, 2021

कोई खास

मिलता जो अब तक कोई खास, तो रख लेती दिल के बेहद पास। जब वो रहेता साथ बढ़ाने मेरी आस,  ना होती मैं यूॅं निराश । कोई खास नही है, तभी तो जिंदगी बेरंग है। सपने भी कुछ खास नही आ रहे, मंजिल के पास जाने को नहीं तड़पा रहे। सूनापन ये जिंदगी का बहुत तकलीफ दे रहा है, महफिल में मौजूद होने के बावजूद तन्हाई दे रहा है । खुद को कोसते रहेने का मौसम छाए जा रहा है, उसकी कमी का अहसास मुझे बेचैन  किए जा रहा है।

दर्द

मेरे प्यारे दर्द,    पूछ रही हूॅं तुम्हारा हालचाल,    आया नहीं तुम्हारा कोई समाचार...   दिन बीत रहें है लगातार,   परेशान हूॅं मैं करके यह विचार...! सच ही तो है ... कितने दिन हो गए, तुम मुझसे मिलने भी नहीं आए ...! भुला दिया क्या मुझे ? आदत हुई है ऐसे तुम्हारी, जैसे मैं तो हूॅं दीवानी तुम्हारी...! जब आते हो तुम पास, बन जाते हो बहुत खास...! क्योंकि गर्मजोशी भरी तुम्हारी झप्पी, मिटा देती है मेरी चुप्पी...! पहले तो मै बिखर जाती हूॅं, पर बाद में निखर जाती हूॅं...! मेरी तन्हाई का एकमात्र सहारा हो तुम, मेरे इस वीरान जीवन नैया का किनारा हो तुम...! क्यूॅं कर रहे हो देर ? आ जाओ जल्दी...ले लो मुझे अपने गर्मजोशी भरे आगोश में...ताकि मै अपना अस्तित्व भुलाकर फिर से खो जाऊॅं तुममें...!और हो जाऊॅं गुमनाम इस दुनिया के अंधेरे में...! हमेशा हमेशा के लिए....! तुमसे मिलने के लिए बेताब, तुम्हारी परछाई....!!! बीना ।

गुस्सा

कभी रुलाता तो कभी हॅंसाता है गुस्सा, पर कभी बहुत कुछ सीखा जाता है ये गुस्सा । कमजोरियों पर काबू करना सिखाता है, तो शब्दों को तोलमोल के बोलना सिखाता है।  हर परिस्थिति में खुद पर काबू करके, धैर्य से अड़चनों का सामना करना भी सिखाता है । अपने दो पल के अहसास का बड़ा सबक सिखाता है, प्यारभरे रिश्तों में भी दरारें ले आता है। सब कुछ छीन लेता है हमसे, पलभर में तन्हाई और दर्द दे जाता है। गुस्सा करने से सबसे ज्यादा नुकसान,  खुद का ही होता है । समय  तो बीत जाता है पर,  यादों में अपना निशान छोड़ जाता है।

सावन का ऑंगन

सावन के ऑंगन में,  मिट्टी की वह खुशबू में...  जो एहसास हुआ करते थे,  वो कहीं गुम हो गए हैं । सावन भी है और आंगन भी वही है,  पर वो एहसास कहीं खो गए हैं .... ढूॅंढ रहे हैं उन पलों को, जो बिताए थे अपनों के संग। वो ठहाकों के शोर के संग, हम भी कहीं खो गए हैं । हम भी कहीं खो गए हैं कोई जाओ ले आओ , हमारे पुराने एहसासों को... जो इस जमाने की चकाचौंध में,  सुन्न हो गए हैं।

दुविधा

दुविधा में हूॅं कैसे उलझनों को सुलझाऊॅं,  दर्द के तूफानों से कैसे में टकराऊॅं...  कशमकश अपनी छुपाकर कैसे मैं मुस्काऊॅं,  मेरी सच्ची हिम्मत इस जहाॅं को कैसे में दिखलाऊॅं ।

ऑंसु

मेरे प्यारे ऑंसु, आप मेरे सबसे अच्छे दोस्त हैं, जानते हैं क्यों?  आप हमेशा मेरे लिए उपलब्ध रहते हो। आपने मुझे मजबूत बनाया है, लेकिन कभी-कभी मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाती जब आप मेरी आँखों में आते हो...! मैं बिल्कुल भी  बोल नहीं सकती हूँ ..!  तो यह मेरा अनुरोध है कि कृपया अपने आप को नियंत्रित करें और जब तक मैं बहुत जोर से ना रोऊॅं तो बाहर मत आइए ।आपकी वजह से लोग मुझे कमजोर समझते हैं और मेरा मजाक भी उड़ाते हैं । आप मेरी कमजोरी नहीं ताकत बनिए..! तभी बाहर आइए जब मै बहुत खुश होकर रो दूॅं, ना कि दुखी होकर….! आपकी लाडली, बीना ।

ऑंसु

ऑंसु थमते नहीं क्योंकि एहसास काबू में नहीं, दिमाग कहता कुछ और पर दिल काबू में नहीं।  अश्क ही है जो साथ निभाते आए हैं हमेशा से, इसीलिए किसी और की हमें  जरूरत ही नहीं...!