मन

मन है चंचल,
भटकता पल पल।
फिरता यहाॅं वहाॅं,
मिले बसेरा जहाॅं ।
लक्ष्य से भटकाता कभी,
काॅंटा बनकर सताता कभी।
अपनों से दूर ले जाता कभी,
उलझने पैदा करता ये कभी।
ख्वाहिशों का है ये स्थान,
जो करवाता कभी अपमान।
जिसने मन को साधा,
उसने पाया सम्मान।
इच्छाओं पर काबू पाकर,
दर्द से मुक्ति पाई उसने।
अपने मन को साधकर,
परम शांति पाई उसने।

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