'यन्त्र'

कौन हूँ मैं ?
एक बेटी ,बहु ,पत्नी या माँ ?
मैं तो एक स्त्री हूँ जो भूल चुकी है जीना। 
      समय के साथ-साथ 
      अपनेआप को ढाल  दिया है मैंने 
      मेरे अन्दर की एक नाजुक यौवना 
      एक भारी  औरत बन गयी। 
अपनेआपको भूलके 
सब रिश्तों को जोड़ लिया मैंने !
बिना रुके मुझे  चलते ही जाना है 
       लोग पूछते है मैं क्या करती हूँ ?
       कुछ भी तो नहीं ?
       दूसरों के लिए जीना कोई काम है ?
       अपनेआप को भुलाना  क्या आसान है ?
मैं कहती हूँ 
सब की जरूरतों को पूरा करना 
क्या कोई काम नहीं ?
       लोग सच ही कहते है ,
       मैं कुछ नहीं करती 
       बस जिए जा रही हूँ। 
बिना किसी मक़सद के 
बिना किसी मंज़िल के 
मैं 'बिना 'बस एक यन्त्र ही बन पायी हूँ  !

Comments

Anonymous said…
Yatra Shukhad Ho

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